*गंगा जमुनी तहजीब की याद दिलाता इन्हौना दशहरा मेला- तीन दिवसीय मेले का पहला दिन- *डॉ मलखान सिंह
अमेठी/जनपद के इन्हौना में लगने वाले गंगा जमुनी संस्कृति की मेले की तैयारियां पूरी हो चुकी है,मेले की शुरुआत कल शनिवार 11 अक्टूबर से हो जायेगी, रविवार को कुश्ती प्रतियोगिता और घोड़ों की दौड़ के बाद मेले की समाप्ति होगी,दो दिवसीय मेले में प्रथम दिन रामलीला मंचन,रावण दहन द्वितीय दिन दंगल प्रतियोगिता के लिए प्रसिद्ध है।यह मेला धार्मिक सद्भाव का प्रतीक है,जिसमें मुस्लिम परिवार भी पीढ़ियों से परंपरा निभाते आ रहे हैं।
मेले की मुख्य विशेषताएँ
रामलीला मंचन: मेले के पहले दिन रामलीला का मंचन होता है, जिसमें सीता हरण से लेकर राम-रावण युद्ध और रावण वध के प्रसंग दिखाए जाते हैं।
रावण दहन: लीला के समापन पर रावण के पुतले का दहन किया जाता है।यह रावण पुतला बांस की फरचियो से तैयार किया जाता है,वर्तमान में रावण का पुतला तैयार कर रहे राम कुमार पुत्र राम सरन ने दैनिक भास्कर संवाददाता को बताया कि उनका परिवार लगभग 40 वर्ष से पुतला बनाने का काम करता है,पुतला बांस की फरचियो पेपर आदि से तैयार किया जाता है,जिसमें साढ़े तीन सौ गोला बांधकर यह पुतला तैयार किया जाता है,लगभग 12दिनो से पुतला बनाने का काम चल रहा है कल शनिवार को इसे अंतिम रूप देकर राम लीला मंचन के समय साज सज्जा कर खड़ा किया जायेगा।
दंगल प्रतियोगिता: दूसरे दिन पहलवानों के बीच दंगल प्रतियोगिता का आयोजन होता है।
सामाजिक सद्भाव: यह मेला सामाजिक सद्भाव और भाईचारे का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जहाँ हिंदू-मुस्लिम समुदाय के लोग मिलकर भाग लेते हैं और परंपराओं का निर्वहन करते हैं।
खरीदारी और मनोरंजन: मेले में झूले,खाने-पीने के स्टॉल और विभिन्न प्रकार की दुकानें भी लगाई जाती हैं।
आयोजन और सुरक्षा
मेले में सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए जाते हैं और पुलिस बल तैनात रहता है।
मेले में दूरदराज से बड़ी संख्या में लोग आते हैं।
मेले की तैयारियों में समिति के पदाधिकारी और स्थानीय लोग सक्रिय रूप से शामिल होते हैं।
संक्षेप में,इन्हौना दशहरा मेला एक सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सव है जो रामलीला, रावण दहन के साथ-साथ सामाजिक सद्भाव और स्थानीय खेल प्रतिभाओं को प्रदर्शित करता है। मेला प्रबंधक चौधरी वहाज अख्तर ने जानकारी देते हुए बताया कि मेले की तैयारियां जोरों पर है,दुकानदार अपनी अपनी दुकानें लगाने में जुटे हुए हैं।इन्हौना कस्बे का यह दो दिवसीय मेला गंगा जमुनी संस्कृति का प्रतीक माना जाता है।







