October 13, 2024

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पुराणों में वर्णित वामनावतार कथा से जुड़ा है रक्षाबंधन का त्योहार, जानिए ऐतिहासिक महत्व और किस तरह देशवासियों ने उत्साह के साथ मनाया रक्षाबंधन का पवित्र त्यौहार

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🚨 बड़े उत्साह के साथ मनाया गया रक्षाबंधन का त्यौहार

🚨 बहनों ने भाइयों की कलाई पर राखी वह माथे पर तिलक लगाकर लंबी उम्र की कामना साथ ही लिया रक्षा का वचन।

 

भाई-बहन के अतिरिक्त अनेक भावनात्मक रिश्ते भी इस पर्व से बंधे हैं जो धर्म जाति और देश की सीमाओं से परे हैं। यह पर्व सामाजिक और पारिवारिक एकता का सांस्कृतिक उपाय रहा है। रक्षाबंधन एक इकलौता ऐसा पर्व है जिसे कभी किसी जाति अथवा धर्म विशेष से जोड़कर नहीं देखा गया। इतिहास के पन्नों में रक्षाबंधन की शुरूआत का भले ही कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिलता लेकिन भाई-बहन के अटूट प्रेम की मिसाल मुगल शासन में भी मिलती है। कभी मुगल शासक भी मजहबी दीवार से ऊपर उठकर राखी की लाज रखते थे।

वैदिक शोध संस्थान एवं कर्मकाण्ड प्रशिक्षण केन्द्र के पूर्व आचार्य डॉ आत्माराम गौतम ने बताया कि श्रावण मास के पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला रक्षाबंधन का त्योहार कब शुरू हुआ इसका कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिलता। इसके बारे में अनेक कहानियां देखने को मिलती हैं। यह सदियों पुराना त्यौहार है।

उन्होंने बताया कि महाभारत में द्रौपदी द्वारा कृष्ण को राखी बांधने के कई उल्लेख मिलते हैं। जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर पट्टी बांध दी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया। कहते हैं परस्पर एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना रक्षाबन्धन है।

इतिहास में चित्तौड़ की रानी कर्णवती एवं मुगल शासक हुमायूं ने तथा अलेक्जंडर और भारतीय राजा पुरू का माना जाता है। हमेशा विजयी रहने वाला अलेक्जंडर राजा पुरू के आगे टिक न सका। अलेक्जंडर की पत्नी ने रक्षा बंधन त्यौहार की महत्ता के बारे में सुना था। उन्होने राजा पुरू को राखी भेजी। राजा पुरू ने राखी की मर्यादा का मान रख अलेक्जंडर की पत्नी को बहन का सम्मान देते हुए युद्ध समाप्ति की घोषणा कर दी।

डॉ गौतम ने बताया कि सिन्धु घाटी सभ्यता से पहले रक्षाबंधन के प्रमाण मिलते हैं। इसके बाद अलग-अलग सभ्यता और संस्कृतियों ने रक्षाबंघन को अपनी सुविधा और सहूलियता से अपनाया । बाद में सभ्यता और समाज के विकास के साथ भाई-बहन का पवित्र त्योहार मनता चला गया।

आज के दिन युगो से चली आ रही परम्परा को निभाते हुये सभी जगहों पर रविवार को श्रवण पूर्णिमा के दिन भाई बहन के प्यार का प्रतीक रक्षाबंधन का त्यौहार उत्साह के साथ मनाया गया जिसमें बहनों ने अपने भाइयों की कलाई पर राखी हुआ माथे पर तिलक लगाकर उनकी लंबी उम्र की कामना की साथ ही उनसे रक्षा का वचन भी लिया भीम भाइयों ने बहनों को उपहार देकर बहनों को खुशी दी। रक्षाबंधन त्यौहार को लेकर घरों में सुबह से ही पारंपरिक पूजा अर्चना की गई।उसके बाद बहनों ने अपने भाइयों कलाई पर राखी बांधी।वहीं कुछ बहने अपनी ससुराल से मायके आकर भाई को राखी बांधी तो कुछ ने वीडियो कॉल कर के रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया।

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