जय हो प्यारे वृदावन बिहारी लाल की, अद्भुत कथा- डा० शशिशेखर स्वामी जी महाराज
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बिहारी जी दिन में 4-5 पोशाक पहनते है और नीचे उसके जामा धारण करते है.. हम अगर एक भी कपडे पहनते है तो हमे भी पसीने आने लगते है और जब रात को पट बन्द होने के बाद जब बिहारी जी की पोशाक उतारी जाती है तो आज तक बिहारी जी जामा गीला हुआ मिलता है…
और रात में जब बिहारी जी तो विश्राम करवाया जाता है तो नियम है बिहारी जी की इत्र से मालिश होती है..तो जैसे एक मनुष्य के अंग दबते है वैसे ही आजतक बिहारी जी के अंग भी दबते हैं…
और ऐसा हो भी क्यूँ ना..
वृंदावन में जो बाँकेबिहारी जी का श्री विग्रह है वो किसी मूर्तिकार ने नहीं बनाया..आज से लगभग 500 साल पहले स्वामी श्री हरिदास जी के भजन के प्रभाव से बाँकेबिहारी जी वृंदावन में निधिवन में प्रकट हुए..उन्हीं बिहारी जी को आज हम वृंदावन में देखते हैभक्तो, हमारी राधा रानी कितनी दयालु हैं, ये शायद किसी को भी बताने कि आवश्यकता नहीं है
परन्तु फ़िर भी न जाने क्यों मन में बार बार यही विचार आ रहा है कि मै राधे जू कि कृपा के विषय में लिखूं.
इनका दरबार तो ऐसा है जहा हर प्रकार के जीव को गले से लगाया जाता है. इतनी कृपा हमारे ठाकुर जी तो कर ही नहीं सकते जितनी कृपा वो बरसाने वाली बरसा देती हैं.
बांके बिहारी तो वैसे ही भक्तो की आहों के आशिक हैं पर राधे जू अपने भक्तों कि आँखों में आंसू नहीं देख सकते.
जिस जीव पर राधा रानी कृपा कर दें, फ़िर वो तो बांके बिहारी से मुकाबला करने के काबिल हो जाता है
ऐसा ही एक प्रसंग मेरा लिखने का मन कर रहा है. बरसाने के पास एक छोटा सा स्थान है मोर-कुटी. इस स्थान कि महिमा मै बताने जा रही हूँ. एक समय की बात है
जब लीला करते हुए राधा जी प्रभु से रूठ गयी और वो रूठ के मोर-कुटी पर जा के बैठ गयी और वहां एक मोर से लाड करने लगी.
जब हमारे ठाकुर जी उन्हें मनाने के लिए मोर-कुटी पर पधारे तो देखा कि राधे जू हमसे तो रूठ गयी और उस मोर से प्यार कर रही हैं
ठाकुर जी को उस मोर से इर्ष्या होने लगी.
वो राधा रानी को मनाने लगे तो किशोरी जी ने ये शर्त रख दी कि हे! बांके बिहारी मेरी नाराज़गी तब दूर होगी जब तुम इस मोर को नृत्य प्रतियोगिता में हरा कर दिखाओगे.
ठाकुर जी इस बात पर राज़ी हो गए क्यूंकि उस नन्द के छोरे को तो नाचने का बहाना चाहिए.
और जब राधा रानी के सामने नाचने कि बात हो तो कौन पीछे हटे.
प्रतियोगिता प्रारंभ हुई, एक तरफ मोर जो पूरे विश्व में अपने नृत्य के लिए विख्यात है और दूसरी ओर हमारे नटवर नागर नन्द किशोर.
प्रभु उस मयूर से बहुत अच्छा नाचने लगे पर फ़िर किशोरी जी को लगा कि यदि बांके बिहारी जीत गए तो बरसाने के मोर किसी को मुह नहीं दिखा पाएंगे कि स्वयं राधा के गांव के मोर एक ग्वाले से न जीत सके.
इसलिए किशोरी जी ने अपनी कृपामयी दृष्टि उस मोर पर डाल दी और फ़िर वो मोर ऐसा नचा कि उसने ठाकुर जी को थका दिया.
सच है बंधुओ जिस पर मेरी राधे जू कृपा दृष्टि डाल दे, वो तो प्रभु को भी हरा सकता है.
जिसने राधा रानी के प्यार को जीत लिया समझो उसने कृष्ण जी को भी जीत लिया क्यूंकि ठाकुर जी तो हमारी किशोरी जी के चरणों के सेवक है.
हम यदि अपनी जिह्वा से राधा नाम गाते हैं,
तो उसमे हमारा कोई पुरुषार्थ नहीं है, वो तो उनकी कृपा ही है जो हमारे मुख पर उनका नाम आया.
और बंधुओ पूरा राधा कहने कि भी आवश्यकता नहीं है, आप अपनी वाणी कहो सिर्फ “रा”, ये रा सुनते ही बांके बिहारी के कान खड़े हो जाते हैं
और जब आप आगे बोलते हो “धा” मतलब आप बोलते हो “राधा”, तो बांके बिहारी के कान नहीं फ़िर तो बांके बिहारी ही खड़े हो जाते हैं उस भक्त के साथ चलने के लिए.
राधा रानी की ठकुराई कि मै कहा तक चर्चा करूँ. किसी जीव कि तो छोडो, यदि राधे न चाहे तो बांके बिहारी भी ब्रज में नहीं रह सकते.
जब कंस को मरने के लिए प्रभु मथुरा गए थे और फ़िर उद्धव को भेजा था ब्रज में अपना सन्देश देकर, तो राधा रानी के लिए उन्होंने यही सन्देश भेजा था:
हे वृषभानु सुते ललिते, मम कौन कियो अपराध तिहारो
काढ दियो ब्रज मंडल ते, अब औरहु दंड दियो अति भारो
सो कर ल्यो अपनों कर ल्यो, निकुंज कुटी यमुना तट प्यारो
आप सों जान दया कि निधान, भई सो भई अब तेरो सहारो…………………
जय हो प्यारी श्रीजु की🌹