विश्व का सबसे प्राचीन मंदिर वाराणसी जहां खुद विराजमान मां शैलपुत्री: मां करती भक्तों की मुराद पूरी, वैवाहिक जीवन में आने वाली परेशानी भी हो जाती दूर
1 min read!.विश्व का सबसे प्राचीन मंदिर वाराणसी जहां खुद विराजमान मां शैलपुत्री: मां करती भक्तों की मुराद पूरी, वैवाहिक जीवन में आने वाली परेशानी भी हो जाती दूर.!
विश्व में धार्मिक स्थल वाराणसी में जहां खुद शिव शंकर विराजमान रहते हैं l वहां से आदि शक्ति कैसे दूर हो सकती है। शिव की नगरी काशी में इसका सबसे बड़ा उदाहरण देखने को मिलता है। वाराणसी में एक ऐसा मंदिर है, जहा पर खुद मां शैलपुत्री विराजमान है l भक्तों को साक्षात दर्शन देती है। मां शैलपुत्री के मंदिर में आस्था का समन्दर उमड़ता है। मंदिर बेहद प्राचीन है और यह इतना पुराना मंदिर है कि यहां पर लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है कि मंदिर को कब व किसने स्थापित किया। मंदिर के सेवादार पंडित बच्चेलाल गोस्वामी जी महराज ने बताया कि राजा शैलराज के यहां पर माता शैलपुत्री का जन्म हुआ था उनके जन्म के समय नारद जी वहां पर पहुंचे थे और कहा था कि यह पुत्री बहुत गुणवान है और भगवान शिव के प्रति आस्था रखने वाली होगी। इसके बाद जब माता शैलपुत्री बड़ी हुई तो वह भ्रमण पर निकल गयी। मन में शिव के प्रति आस्था थी इसलिए वह उनकी नगरी काशी पहुंची। यहां पर वरुणा नदी के किनारे की जगह उन्हें बहुत अच्छी लगी। इसके बाद माता शैलपुत्री यही पर तप करने लगी। कुछ दिन बाद पिता भी यहां आये तो देखा कि उनकी पुत्री आसन लगाकर तप कर ही है इसके बाद राजा शैलराज भी वही पर आसन लगा कर पत करने लगे। बाद में पिता व पुत्री के मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर में नीचे पिता राजा शैलराज शिवलिंग के रुप में विराजामन है जबकि उसी गर्र्भगृह में माता शैलपुत्री उपर के स्थान में विराजमान है। उन्होंने बताया कि मा शैलपुत्री ने फिर से पार्वती के रुप में जन्म लिया था और फिर उनका महादेव से विवाह हुआ था।
देश में नहीं होगा ऐसा मंदिर
सेवादार पंडित बच्चेलाल गोस्वामी जी महाराज का दावा है कि दुनिया में अन्य कही पर ऐसा मंदिर नहीं होगा। माता यहां पर खुद विराजमान है, जबकि अन्य कही पर माता के विराजमान होने की बात सामने नहीं आयी है। उन्होंने कहा कि बालावस्था में ही माता तप करने के लिए बैठ गयी थी, इसलिए अन्य कही जाने की संभावन नहीं हो सकती है। दोनों नवरात्र के पहले दिन माता शैलपुत्री माता पर्वती व दुर्गा के नौ रुप का दर्शन देती है।