जरा चलके अयोध्या मे देखो राम सरयू नहाते मिलेंगे: डा० शशिशेखर स्वामी
1 min readएड० उत्तम सिंह
- पृथ्वी की सर्वोत्तम नगरी थी वाल्मीकि की अयोध्या
- इंद्र की अमरावती जैसी थी दशरथ की अयोध्या
- तुलसी के वर्णन में भक्त भाव की प्रधानता
राम की कीर्ति ध्वजा को दुनिया के कोने-कोने में ले जाने के लिए भारत वर्ष के दो कवियों वाल्मीकि और तुलसीदास ने दो महान ग्रंथों की रचना की. इन ग्रंथों के शब्द बिंब, वाक्य विन्यास से राम और रामनगरी अयोध्या करोड़ों लोगों के मन में जीवंत हो उठी.
अब राम मंदिर निर्माण के लिए सैकड़ों साल बाद अवधपुरी का फिर से श्रृंगार हुआ है. अयोध्या में रामलला के जन्मस्थान पर कल मंदिर निर्माण की नींव रखी जाएगी. इस मौके पर हम आपको ले चलते हैं हजारों साल पुरानी अयोध्या. वो अयोध्या जिसका वर्णन रामायण में वाल्मीकि में दिया है. तुलसी की कल्पनाशीलता की अयोध्या जो रामचरित मानस में वर्णित है. कैसा था वो नगर, जिसमें राजा राम बसते थे, जिस नगर में गांधी के सपनों का राम राज्य प्रस्फुटित हुआ था.
रामायण के बालकांड के पांचवें सर्ग में महर्षि वाल्मीकि ने अयोध्यापुरी के वैभव और भव्यता का विस्तार से चित्रण किया है.
वाल्मीकि अनुसार इसे मनु ने बसाया था. वाल्मीकि लिखते हैं सरयू नदी के तट पर संतुष्ट जनों से पूर्ण धनधान्य से भरा-पूरा, उत्तरोत्तर उन्नति को प्राप्त कोसल नामक एक बड़ा देश था.
अयोध्या की ज्ञान और निर्वाण परंपरा का वर्णन करते हुए तुलसी कहते हैं कि नदी के किनारे कहीं-कहीं सांसारिक मोह और बंधनों से विरक्त और ज्ञानपरायण मुनि और संन्यासी निवास करते हैं. सरयू के किनारे-किनारे सुंदर तुलसी के झुंड-के-झुंड बहुत-से पेड़ मुनियों ने लगा रखे हैं.
तुलसी की अयोध्या मर्यादा पुरुषोत्तम राम के गुणों पर तिरोहित है वो कहते हैं कि उस नगर के सौंदर्य की क्या चर्चा जहां खुद रघुनाथ विराजते हों. तुलसी कहते हैं,
रमानाथ जहं राजा सो पुर बरनि कि जाइ।
अनिमादिक सुख संपदा रहीं अवध सब छाइ॥
अर्थात स्वयं लक्ष्मीपति भगवान जहां राजा हों, उस नगर का कहीं वर्णन किया जा सकता है? अणिमा आदि आठों सिद्धियां और समस्त सुख-संपत्तियां अयोध्या में छा रही हैं.
रामशरण का मंत्र देते हुए तुलसी कहते हैं कि लोग जहां-तहां रघुनाथ के गुण गाते हैं और बैठकर एक-दूसरे को यही सीख देते हैं कि शरणागत का पालन करनेवाले राम को भजो; शोभा, शील, रूप और गुणों के धाम रघुनाथ को भजो|
हनुमत नगर ग्राम पूरे दुलहिन मे श्रीरामकथा हनुमत महायज्ञ मे यजमान दिनेश सिंह, उदय प्रताप सिंह, समर बहादुर सिंह, उत्तम सिंह, अरुण सिंह, सूरज तिवारी ने व्यास पूजन कर हनुमत महायज्ञ के पश्चात श्रीराम कथा का श्रवण करते श्रृद्धालु|
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