हिन्दू पंचांग के अनुसार जानिये! कब मनायें श्री कृष्ण जन्माष्टमी
1 min read*जन्माष्टमी निर्णय*
डा० शशिशेखरस्वामी जी महाराज 9450037924
वाराणसी से प्रकाशित होने वाले सर्वमान्य श्री काशी विश्वनाथ हृषीकेश पञ्चाङ्ग के अनुसार इस वर्ष समस्त गृहस्थ जन (स्मार्त) 19 अगस्त को निशीथ व्यापिनी अष्टमी तिथि में व्रत करेंगे।
तथा समस्त वैष्णव मतावलम्बी जन जो कि रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का व्रत करते हैं वे 20 अगस्त को व्रत करेंगे।
पञ्चाङ्ग
__________________ #कृष्ण_जन्माष्टमी_निर्णय
#ऋषिकेश_पंचांग 18 अगस्त 2022 को अष्टमी तिथि का प्रारंभ रात्रि 12:14 मिनट से 19 अगस्त 2022 रात्रि 1:06 तक
#निर्णय 19 तारीख को कृष्ण जन्माष्टमी
#गणेश_आपा पंचांग के मतानुसार 18 अगस्त 2022 को 12:14 मिनट रात्रि से प्रारंभ होकर 19 अगस्त 2022 को अर्ध रात्रि 1:06 तक
#निर्णय 19 तारीख को कृष्ण जन्माष्टमी
#विश्व_पंचांग BHU के मतानुसार 18 अगस्त 2022 रात्रि 11:55 से 19 अगस्त 2022 रात्रि 12:43 मिनट तक
#निर्णय 19 अगस्त 2022 को कृष्ण जन्माष्टमी
#महावीर_पंचांग के मतानुसार 18 अगस्त 2022 को रात्रि 12:14 से प्रारंभ होकर 19 अगस्त 2022 को रात्रि 1:06 तक अष्टमी रहेगा
#निर्णय 19 तारीख को कृष्ण जन्माष्टमी
#अन्नपूर्णा_काशी विश्वनाथ पंचांग के मतानुसार 18 अगस्त 2022 को रात्रि 12:06 से प्रारंभ होकर 19 अगस्त 2022 को रात्रि 2:07 तक अष्टमी रहेगा
#निर्णय 19 तारीख को कृष्ण जन्माष्टमी
#धर्म_रक्षा_पंचांग के मतानुसार 18 अगस्त 2022 को रात्रि 12:06 से प्रारंभ होकर 19 अगस्त 2022 को 12:58 तक अष्टमी रहेगा
#निर्णय कृष्ण जन्माष्टमी 19 तारीख को
#पद्म_पुराण मैं कहा गया है कि सप्तमी विधा अष्टमी ग्राह्य नहीं है।
धर्मसिंधु पुरुषार्थ चिंतामणि इत्यादि धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है की 2 दिन निशीथ में अष्टमी प्राप्त हो तो पहले को छोड़कर दूसरे में में व्रत करना चाहिए।
#द्वयदिने यदि मध्यरात्रौ अष्टमी यदि स्यात् तदा परा ग्राह्य। #धर्मसिंधु 131 पृ।
#कुछ_पंचांगकार अपना मत दे रहे हैं कि 18 अगस्त 2022 को कृष्ण जन्माष्टमी है उनको एक बार पद्म पुराण पढ़ लेना चाहिए ब्रह्म खण्ड अध्याय १३में क्या लिखा है:
#श्रुत्वा_पापानि नश्यन्ति कुर्यात्किं वा भविष्यति ।
य इदं कुरुते मत्यों या च नारी हरेर्व्रतम् ॥
#ऐश्वर्यमतुलं प्राप्य जन्मन्यत्र यथेरितम्।
पूर्वविद्धा न कर्त्तव्या तृतीया पष्ठिरेव च ॥
#अष्टम्येकादशीभूता धर्मकामार्थवाञ्छुभिः ।
वर्जयित्वा प्रयत्नेन सप्तमीसंयुताष्टमीम् ॥
#विना ऋक्षेऽपि कर्तव्या नवमी संयुताष्टमी ।
उदये चाष्टमी किञ्चित्सकला नवमी यदि ॥
#मुहूर्तरोहिणीयुक्ता सम्पूर्णा चाष्टमी भवेत्।
अष्टमी बुधवारेण रोहिणी सहिता यदि ।।
#सोमेनैव भवेद्राजन्कि कृतैर्वतकोटिभिः । नवम्यामुदयात्किञ्चित्सोमे सापि बुधेऽपि च ।।
#अपि वर्षशतेनापि लभ्यते वा न लभ्यते ।
विना ऋक्षं न कर्त्तव्या नवमीसंयुताष्टमी।।
श्रीहरि के इस व्रत को जो पुरुष अथवा जो नारी करती है वह इस जन्म में अभीप्सित अतुलनीय ऐश्वर्य प्राप्त करता है। तृतीया, षष्ठी, अष्टमी तथा एकादशी का पूर्व विद्ध व्रत, धर्म, अर्थ और काम चाहने वाले को नहीं करना चाहिए।
सप्तमी से युक्त अष्टमी व्रत का प्रयत्न पूर्वक त्याग करना चाहिए
नवमी से युक्त अष्टमी यदि बिना रोहिणी नक्षत्र के भी हो तो उसका व्रत करना चाहिए यदि उदयकाल थोड़ी सी अष्टमी हो और पूरे दिन में नवमी हो ।
और उस दिन यदि मुहूर्त भर भी रोहिणी हो तो उस दिन सम्पूर्ण दिन अष्टमी होती ।
यदि अष्टमी बुधवार और रोहिणी से युक्त हो अथवा सोमवार से युक्त हो तो हे राजन!कहां गया है कि–
#कार्या विद्धापि सप्तम्यां रोहिणी संयुताष्टमी ।
कला काष्ठा मुहूर्तेऽपि यदा कृष्णाष्टमी तिथिः ॥
#नवम्यां सैव वा ग्राह्या सप्तमीसंयुता न हि । किंपुनर्बुधवारेण सोमेनापि विशेषतः ॥
#किं_पुनर्नवमीयुक्ता कुलकोट्यास्तु मुक्तिदा ।
पलवेधेन राजेन्द्र सप्तम्या अष्टमीं त्यजेत् ॥
सुराया बिन्दुना स्पृष्टं गङ्गाम्भः कलशं यथा ॥
उसका फल करोड़ों व्रतों के फल से भी अधिक होता है। नवमी तिथि को अष्टमी थोड़ी सी हो और उसका सोमवार और बुधवार भी संयोग हो तो ऐसी अष्टमी का सैकड़ों वर्ष में भी मिलना मुश्किल होता है।
बिना रोहिणी नक्षत्र के नवमी से युक्त अष्टमी व्रत नहीं करना चाहिए ।
यदि रोहिणी से युक्त अष्टमी सप्तमी विद्धा हो तो भी उसका व्रत करना चाहिए।
कला, काष्ठा या मूहुर्त भर भी यदि श्रीकृष्णाष्टमी तिथि
नवमी तिथि में हो तो उसका व्रत करना चाहिए, सप्तमी से युक्त अष्टमी को नहीं करना चाहिए ।
यदि वह सोमवार अथवा बुधवार से युक्त हो तो फिर उसके बारे में क्या कहना है ।
ऐसा होकर भी अष्टमी का यदि नवमी से संयोग हो तो वह करोड़ों वंश का उद्धार करने वाली होती है।
हे राजेन्द्र! यदि अष्टमी का सप्तमी से पल भर का भी वेध हो तो उस अष्टमी को नहीं करना चाहिए ।
एक विन्दु भी मदिरा से जिसका सम्बन्ध हो गया हो इस तरह के गङ्गाजल के समान वह अष्टमी अपवित्र होती है।
डॉ शशिशेखरस्वामी जी महाराज 9450037924